Tuesday 22 December 2009

एक हिंदी कविता - जेब का मुसाफिर

गार्गी फुले यांच्या अभिनय प्रशिक्षण कार्यशाळेसाठी लिहिलेली, काव्यवाचनातून शब्दफेक इ. शिकण्यासाठी लिहिलेली एक हिंदी कविता. "मुसाफिर" हा विषय दिला होता, त्यावर एका नोटेचा प्रवास कसा होतो याचे चितारलेले चित्र -

जेब का मुसाफिर

सुनलो भाई मेरी कहानी, मै तो हूँ एक सौ का नोट.
जेब-जेब में बीती जिंदगी, यादें कितनी आती है लौट.

पैदा होते बैंक में गया, मूल्य लगाथा बडाही थोक.
रखा मुझे बहुत शानसे, आखिर था मै एक सौ का नोट.

पड़ाव जो अगला आया वोह था, छगनलाल का काला कोट.
धन्य है वोह कंजूस जिसने रखा सहजकर मुझको रोज.

छोटासा था बेटा उसका, पर था उसमे बडाही खोट!
हार गया जब लगा दांवपे , मै बेचारा सौ का नोट.

लगा हाथ जब एक नेता के, देखे उसके अनेक मुखोट.
भ्रष्टाचार की बहती गंगा, उफ़ फस गया मै सौ का नोट.

मंदिर की पेटी में पाया एक दिन, पड़ा था मै खाके चोट.
उठाया पुजारीने खुशीसे, जब देखा उसने सौ का नोट.

जाने कैसे हाथ आया हिजड़ेके, हाय वोह उसके रंगे होठ.
नचाया उसने लोगों के सामने, मै "बेबस" एक सौ का नोट.

भिखारी देखे मुझे गिरा जहाँ, था वोह कोई एक गाँधी रोड.
मुझे उठाने की चाहत में, लगाये वोह एक अंतिम दौड़.

हाय हाय रे ट्रक ने उड़ाया, खायी उसने गहरी चोट.
ढेर हो गया वोह भिखारी, मिला न उसको सौ का नोट.

मै सोंचू उसका भाग्य सलोना, इधर कम्बक्त ना आती है मौत!
चाहकरभी ना मरू, अमर हो गया मै सौ का नोट.....

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 15 फरवरी 2020 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete